संपत देख न हासियै, विपत देख मत रोय। जिण दीहाड़े जिण घड़ी, होणी हुवै सो होय।।

संपत देख न हासियै, विपत देख मत रोय। जिण दीहाड़े जिण घड़ी, होणी हुवै सो होय।।

MARWARI KAHAWATE

MARWARI PATHSHALA

10/27/20241 min read

संपत देख न हासियै, विपत देख मत रोय।
जिण दीहाड़े जिण घड़ी, होणी हुवै सो होय।।

मनुष्य को संपन्नता देख कर हंसना या अत्यधिक खुश नहीं होना चाहिए और विपत्ति देखकर रोना या दुखी भी नहीं होना चाहिए। कारण कि जिस दिन जिस घड़ी जो होना होता है, वह होकर ही रहता है। भले ही हमें वो चीज़ असंभव लगे मगर नियति किसी न किसी रूप मे आकर हमसे होनी को करवा देती है।

किसी राज्य में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसके घर में बूढा बाप, अंधी मां और स्त्री थी। वह ब्राह्मण देवी का बड़ा भक्त था। तन-मन से उसकी पूजा में लगा रहता था। जब देवी की पूजा करते करते उसे बहुत समय हो गया तो एक दिन देवी प्रकट हुई। बोली कि हे ब्राह्मण, मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, तू जो चाहे वरदान में मांग ले। मैं देने को तैयार हूं। ब्राह्मण सीधा सादा आदमी था। बोले कि माता, थोड़ी देर की मोहलत दो। मेरे घर में तीन प्राणि और हैं। उनकी राय लूं, तब तुमसे आकर वरदान मांगूंगा। देवी ने कहा कि जल्दी जा, देर मत लगाना। ब्राह्मण पोथी-पत्र बगल में दबाये घर पहुंचा। वृद्ध बाप, अंधी मां और अपनी स्त्री से कहा कि आज देवी ने मुझे दर्शन दिए हैं और कहा है कि मैं जो चाहूं, एक चीज मांग लूं। बूढा बाप बड़ा खुश हुआ। बोला कि तुम जैसा सुपुत्र हमारे कुल में पैदा नहीं हुआ। तू धन्य है। तू देवी से प्रार्थना कर कि हमारा घर सोने चांदी से भर जाय, ताकि हम खूब धनवान बन जायं और आराम से रहें। अंधी मां ने कहा कि नहीं, यह बात ठीक नहीं। देवी तो रोज रोज प्रकट नहीं होती। उनसे यह वरदान मांग कि मेरी मां की आंख ठीक हो जायं। यह सुनकर स्त्री बोली कि वाह, यह आपने अच्छी कही। पूजा तो की मेरे पति ने पर कोई धन मांग रहा है, कोई आंख में क्या यों ही बैठी रहूं? जब से यहां आई हूं, लोग मुझे बांझ कह कर ताना मारा करते हैं। ये ताने मैं बरदाशत नहीं कर सकती। सुनो, तुम देवी से जाकर कहो कि मेरी स्त्री का बांझपन दूर हो जाय और उसके सुंदर पुत्र उत्पन्न हो। तीनों ने तीन प्रकार की बातें की। अलग अलग-वरदान मांगने के लिए कहा। ब्राह्मण दुविधा में पड़ गया। सोचने लगा कि किस की बात माने, किसकी नही? बोला कि तुम तीनों की राय अलग अलग है और वरदान में सिर्फ एक ही चीज मिल सकती है। अब मैं क्या करूं? बूढे बाप ने कहा कि तुम इनकी बात मत मान। घर में धन आएगा तो नौकर चाकर रख लिये जाएंगे, अंधी बुढिया की टहल होने लगेगी और तेरी स्त्री तो कल की छोकरी है, समय आने पर इसके लडक़ा भी आप ही हो जाएगा। इसके लिए इतनी जल्दी क्या है? बूढी ने यह सुना तो खिसियानी होकर बोली कि बूढे की तो अकल मारी गई। साठ साल की उमर में आदमी की मति भ्रष्ट हो जाती है। क्या तू नहीं देखता कि मैं इस समय एक बूंद पानी के लिए परेशान हूं। जा,मेरे लिए आंखें मांग ले। स्त्री ने बूढे बुढिया की सुनी तो रोने लगी। बोली कि अगर मेरे पुत्र नहीं हुआ तो मैं कुएं में डूब मरूंगी। घर में बड़ा भारी झगड़ा खड़ा हो गया। गरीब ब्राह्मण क्या करता।

ब्राह्मण परेशान होकर उल्टे पांव लौट आया। और देवी के पास आकर कहने लगा कि देवी तुमने सचमुच हम पर बड़ी कृपा की है। मैं तुहें कैसे धन्यवाद दूं? पर मैं बड़ा अभागा हूं। घर में तीन प्राणी हैं और उन दिनों की अलग अलग मांगें हैं। इसलिए मैं वर मांगने में लाचार हूं। देवी ने ब्राह्मण के शब्द सुने तो उसे बड़ी दया आई। उसने ब्राह्मण से कहा कि मैं थोड़ी देर और यहां ठहर जाती हूं। अपने घर के लोगों को समझा दे कि सब सोच समझकर एक चीज मांग लें। ब्राह्मण फिर घर वापस पहुंचा और तीनों को समझाने लगा। पर उसकी कौन सुनता। सब अपनी अपनी जिद पर अड़े हुए थे। वह निराश होकर वापस लौट पड़ा। अपने भाग्य पर रोता हुआ देवी के मंदिर की ओर चलने लगा। जब देवी का मंदिर निकट आया तो ब्राह्मण ने देखाकि बगल में बस्ता और कान पर कलम लगाये एक मुंशीजी बैठे हुए हैं। ब्राह्मण को देखकर पूछने लगे कि क्यों भाई, खैर तो है? तुम रोते क्यों हो? ब्राह्मण बोला कि क्या करूं, आज इतने दिनों की तपस्या के बाद देवी प्रकट हुई और वरदान देने का वचन दे रही है। पर मेरे घर में झगड़ा मचा हुआ है। अंधी मां आंखें, स्त्री लडका और निर्धन बाप धन मांगता है। एक बात पर वे राजी नहीं होते। इसलिए चलता हूं देवी से कहूंगाकि मैं तुमसे वर नहीं ले सकता। इसी कारण अपने भाग्य पर रो रहा हूँ.। मुंशजी बोलेकि क्या तुम्हारे गांव में कोई दीवान नहीं रहते, जिनसे इस बारे में सलाह कर लो? ब्राह्मण बोला कि एक मुंशीजी रहते तो हैं। परंतु इतना समय नहीं है कि मैं उनसे मिल सकूं। आप भी मुंशी मालूम होते हैं। इस कठिन समय में अगर मेरी कुछ सहायता कर सकें तो मैं आपका खूब एहसान मानूंगा। मुंशीजी बोले कि अच्छा, तुम देवी से जाकर कहो कि मेरी माता अपने पोते को सोने के कटोरे में दूध पीता देखे। ब्राह्मण ने यह बात सुनी तो मारे खुशी के गदगद हो गया। बोला कि वाह मुंशीजी। आपने कैसी अच्छी राय दी है। आपके इस उपकार को मैं जीवन भर नहीं भूलूंगा। यह कह कर ब्राह्मण बडी खुशी के साथ वहां से दौड़ा। मंदिर पहुंचा तो देवी ने पूछा कि क्या तय हुआ है? उसने कहा कि माता, मुझको यह वरदान दीजिए कि मेरी मां अपने पोते को सोने के कटोरे में दूध पीता देखे। यह सुनकर देवी को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोली कि वर देने का तो मैं वचन दे चुकी हूं, इससे मैं कभी नहीं फिर सकती। जाओ, तुम्हारी कामना पूरी होगी। यह कह कर देवी अंतरधान हो गई।

तो बात समझ में आ गई ना कि होनी तो हो कर रहती है भले ही हमें वो असंभव लगे। कोई न कोई निमित बन आप से होनी को करवा देता है।