घणा सरल बणियै नहीं, देया जो वणराय। सीधा सीधा काटतां, बांका तरू बच जाय।।

घणा सरल बणियै नहीं, देया जो वणराय। सीधा सीधा काटतां, बांका तरू बच जाय।।

MARWARI KAHAWATE

MARWARI PATHSHALA

10/27/20241 min read

घणा सरल बणियै नहीं, देया जो वणराय।
सीधा सीधा काटतां, बांका तरू बच जाय।।

इस संसार में ज्यादा सीधा और सरल बनकर रहना ठीक नहीं है। अब जंगल को ही देख लो ..सीधे - सीधे पेड़ काट दिये जाते हैं, लेकिन टेढ़े व बांके पेड़ हमेशा कटने से बच जाते हैं। सीधो को काटने में मेहनत और समय नहीं लगता ना ।

दो भाई थे, एक विवाहित और दूसरा दूसरा कुंआरा। मां-बाप स्वर्ग सिधार चुके थे। छोटा भाई भोला और सीधा था। लेकिन उसकी भाभी बड़ी चालाक थी। एक दिन भाभी ने बड़े प्यार से कहा कि देवरजी, अलग-अलग हो जाएं तो ठीक रहेगा, ऐसा करने से तुम्हारे ऊपर गृहस्थी चलाने का बोझ पड़ेगा तो तुम होशियार हो जाओगे। देवर ने कहा कि मैं तो हिस्से पांती की बात कुछ समझता नहीं, आप को ठीक लगे वैसा ही कर दो। भाभी ने कहा कि तुम नहीं समझते तो क्या हुआ, ऊपर भगवान तो बैठा है। मैं तुम्हारे साथ अन्याय थोड़े ही करूंगी। फिर उसने कहा कि देखो, हमारे पास दो खेत है, एक पूर्व दिशा में और दूसरा पश्चिम दिशा में। जमीन दोनों में बराबर है। पूर्व दिशा वाला खेत तुम्हारा रहा और पश्चिम दिशा वाला मेरा।इसके अलावा घर में एक भैंस और एक कंबल है। भैंस का आगे का हिस्सा तुम्हारा और पीछे का मेरा। कंबले दिन में तुम्हारी और रात में मेरी। देवर बेचारा इतना भोला था कि भाभी की चालाकी भरी इस मोटी सी बात को नहीं समझ सका। उसने तो यही सोच लिया कि पांती तो बराबर की हुई है। नतीजा यह हुआ कि देवर तो अपने खेत में काम करने के लिए जाए तो जाती दफा भी उसे सामने सूरज पड़े और आती दफा भी। क्योंकि सूरज पूर्व दिशा था। भैंस को चराना तो देवर को पड़े और दूहे भाभी। क्योंकि अगला हिस्सा देवर की पांती में आया था और पिछला हिस्सा भाभी के। इसी तरह कंबल का बोझ दिन में तो ढोए देवर और रात को ओढे भाभी। कुछ ही दिनों बाद देवर को जरा अटपटा-अटपटा लगने लगा कि बात क्या है? न तो अपने को भैंस का दूध ही मिलता है और न ही ओढने को कंबल ही। खेत में जाते जाते अपने को धूप मिलती है और भाभी को छाया। पांती बिलकुल बराबर बराबर हुई थी तो फिर नतीजा यह कैसे आया? वह उदास उदास रहने लगा, तब एक दिन उसके एक मित्र ने, जो कि चालाकी में भाभी का दादा था, अपने मित्र से बोला कि घबराओं मत, जो पांती हो गई उसके लिए इनकार भी तुम्हें नहीं करना पड़ेगा और मामला भी ठीक हो जाएगा। ऐसा कहकर वह उसे यह समझाने लगा कि अब उसे क्या करना है।

इसके बाद मित्र ने कहा कि तुम एक काम करना कि शाम होते-होते कंबल को तो पानी में भिगोकर रख देना और तुहारी भाभी जब दूध दूहे तब भैंस को सामने से जोर से पीछे की ओर धकेलना। भाभी कुछ कहे तो तुम कह देना कि भाभी, कंबल दिन में मेरा है, जो चाहे करूं, रात को हाथ लगाऊं तो तुम्हारा गुनाहगार। उसी तरह भैंस के पीछे वाले हिस्से को तो मैं जो चाहे करूं, इसमें तुम्हें बोलने का, आपत्ति उठाने का हक नहीं। देवर ने ऐसा ही किया। जब भाभी भैंस दूहने बैठी और दूध दूह चुकी, तब देवर ने भैंस के सींग पकड़ कर उसे जोरों से पीछे की ओर ढकेला। नतीजा यह हुआ कि दूध तो सारा बर्तन से गिर कर जमीन पर फैल गया और भाभी की हडडी पसली एक हो गई। भाभी और भाई कुछ बोले उससे पहले तो देवर के पास अपने मित्र का रटाया हुआ उत्तर तैयार था। सुनकर दोनों चुप हो गए। बड़े भाई ने अपनी पत्नी को भीतर ले जाकर उसके हल्दी तेल का सिकताव किया और उसे ओढाने के लिए कंबल खोजी। जब कंबल भीगी हुई मिली तो अपने छोटे भाई से कहा कि तुमने यह क्या किया? कंबल भिगोकर क्यों दी? तो छोटे भाई के पास उत्तर तैयार था कि दिन के वक्त कंबल मेरी है, जचे सो करूं। बड़े भाई ने आकर अपनी पत्नी को सारा हाल कहा तो वह बोली कि मैं सारी बात समझ गई हूं, यह बुद्धि या दुर्बुद्धि जो भी कहो, मेरे देवर की खुद की नहीं है। मैं जानती हूं यह किसकी दी हुईहै। मैंने जैसा किया था, वैसा ही फल पा लिया है। अब कल सुबह तुम्हारे भाई के उस मित्र को यहां बुलाओ तो घर फिर से बस सकेगा। नहीं तो उजड़ा ही समझो। दूसरे दिन सुबह उस मित्र को बुलाया गया। उसने आकर दोनों भाइयों को फिर से प्रेम कर दिया तथा अपने मित्र को पिछले दिनों की क्षति पूर्ति दिलाई। इस तरह भाभी के कारण जो अन्याय देवर के साथ हो रहा था वह समाप्त हो गया और दोनों भाई फिर से एक साथ रहने लग गए। अतः कोई सगा ही क्यों ना हो ज्यादा सीधे बन कर रहो गे तो ठगा जाना निश्चित है। भले बनो मूर्ख मत बनो।