हिम्मत किम्मत होय, बिन हिम्मत किम्मत नहीं। करै न आदर कोय, रद कागद ज्यों राजिया।।
हिम्मत किम्मत होय, बिन हिम्मत किम्मत नहीं। करै न आदर कोय, रद कागद ज्यों राजिया।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 min read
हिम्मत किम्मत होय, बिन हिम्मत किम्मत नहीं।
करै न आदर कोय, रद कागद ज्यों राजिया।।
इस संसार में हिम्मत की कीमत होती है। बिना हिम्मत कीमत नहीं हुआ करती है। हिम्मत भी सही समय पर जरूरी वरना हिम्मत की रददी कागज की तरह कोई भी आदर नहीं करता है।
चंद्रपुर राज्य में महाराजा रतनसिंह राज कर रहे थे। एक बार उनके दरबार में एक बहुत ही मोटा तगड़ा पहलवान आया और महाराजा के आगे शीश झुकाकर अर्ज करने लगा कि महाराज, मैं एक पहलवान हूं। उत्तर में आये सभी राज्यों में कुश्तियों लड़कर मैंने जीत हासिल की है। आपके राज्य में भी मैं चुनौती देेने आया हूं कि यदि कोई दम खम वाला हो तो वह आकर मेरे से मुकाबला करे। मैं तो बड़े बड़े नामचीन पहलवानों को हरा चुका हूं। यहां भी मैं जीत का डंका बजाने आया हं। महाराजा ने पहलवान को ठहराने का आदेश दिया। इसके साथ ही पूरे राज्य में डूंडी पिटवाई कि जो भी व्यक्ति बाहर से आये इस पहलवान को कुश्ती में हरा देगा, उसको राज्य की ओर से पुरस्कार और सम्मान दिया जाएगा। बाहर से आये उस पहलवान के तेवर देखकर राज्य के अच्छे अच्छे पहलवानों की हिम्मत जवाब दे गई। किसी का भी साहस नहीं हुआ उससे भिडऩे का। दिन पर दिन निकलने लगे। महाराजा अंदर ही अंदर चिंतित होने लगे कि यह तो बेजा हुआ, यदि राज्य का कोई पहलवान इससे भिडऩे को तैयार नहीं हुआ तो राज्य के लिए शर्म की बात होगी। पूरे राज्य में उस पहलवान की दी हुई चुनौती की चरचा थी। हर किसी के मुंह पर केवल यही बात थी कि देखते हैं, कौन माई का लाल आगे आता है। राज्य के कैदखाने में उस समय एक ऐसा कैदी केद था, जो कि उस पहलवान से भिडऩे की हिम्मत रखता था। जब उसके कानों में इस बात की चरचा पड़ी तो उसने उस पहलवान से भिडऩे का निश्चय किया। उसने अपनी मंशा प्रकट करते हुए पहरेदार के जरिये महाराजा को इत्तला करवाई। पहरेदार ने तुरंत महाराजा के पास जाकर अर्ज की कि महाराज, कैदखाने में कैद एक कैदी इस बाहर के पहलवान से लडऩा चाहता है। यह सुनकर महाराजा को बड़ा हर्ष हुआ। उसने उस कैदी को तुरंत राजदरबार में हाजिर करने का आदेश दिया। जब पहरेदार उस कैदी को बेडिय़ों में जकड़े हुए राजदरबार में लाए तो महाराजा ई उसे देखकर चकित रह गए। उसका डील डौल देखकर महाराजा को पूरा विश्वास हो गया कि जरूर यह उस पहवान को पछाड़ देगा।
महाराजा ने उस कैदी की हथकडिय़ां और बेडिय़ां तोडऩे के लिए लोहार को बुलाने का आदेश दिया। इस पर कैदी बोला कि महाराज, लोहार को बुलाने की कोई जरूरत नहीं है। इनको तो मैं ही तोड़ दूंगा। और देखते देखते उस कैदी ने अपने हाथों पांवों को दोनों ओर फैलाया और हथकडिय़ों व बेडिय़ा टूटकर जमीन पर एक ओर जा गिरी। महाराजा और सभी दरबारी सहित वहां उपस्थित सभी लोग कैदी की हिम्मत और ताकत देखकर आश्चर्य में पड़ गए। कैदी ने महाराजा से अर्ज की कि महाराज, अब तो आप कुश्ती लडऩे के लिए इंतजाम करवाइए। इस राज्य के मान सम्मान पर आंच नहीं आनी चाहिए। तब महाराजा ने कैदी से पूछा कि तुम्हारे में इतनी हिम्मत और ताकत थी, फिर तुमने इतने दिन कैद में कैसे निकाल दिए? कैदी ने जवाब दिया कि महाराज, यदि मैं ये बंधन तोड़कर कहीं भाग जाता तो आपके सिपाही मेरे घर परिवार वालों को तंग करते। इसलिए मैं हथकडिय़ां और बेडिय़ां तोड़ कर कैदखाने से नहीं भागा। आखिरकार कुश्ती हुई। उस समय पूरा नगर देखने के लिए उमड़ पड़ा। बहुत ही जबरदस्त कुश्ती थी वह। थोडी ही देर में देखते देखते उसने बाहरी पहलवान को पटककर पछाड़ दिया। चारों ओर वाह वाह से आकाश गूंज उठा। महाराजा रतनसिंह ने जीत की खुशी में उस कैदी की बाकी सजा माफ कर दी और उसे मान सम्मान के साथ भारी पुरस्कार दिया। इस प्रकार कैदी प्रसन्नता के साथ अपने घर गया। हिम्मत कर उसने सही समय पर अपनी ताकत दिखाई तभी उसकी सही क़ीमत यानि मूल्य या इनाम मिला।

