मन पापी मन पारधी, मन चंचळ मन चोर। मन कै मतै न चालियै, पलक-पलक मन और।।
मन पापी मन पारधी, मन चंचळ मन चोर। मन कै मतै न चालियै, पलक-पलक मन और।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 min read
मन पापी मन पारधी, मन चंचळ मन चोर।
मन कै मतै न चालियै, पलक-पलक मन और।।
‘‘मन पापी है, मन शिकारी है, मन चंचल है, मन चोर है। इसलिए मन के अनुसार कभी नहीं चलना चाहिए, क्योंकि मन पल-पल में और होता है बदल जाता है।’’
एक महात्माजी थे, जो एक कुटिया में रहते थे। वे अपने सिर और मुंह के बाल बिल्कुल मुंडाये रखते थे। सिर्फ मूंछों की जगह दो बाल छोड़े हुए थे, एक इधर दूसरा उधर। महात्माजी बड़े ही सरल और सहज स्वभाव के थे। महात्माजी की कुटिया के सामने से एक वेश्या नित्य गुजरा करती थी। एक दिन वेश्या को महात्माजी की मूंछों के वे दो बाल दिख पड़े तो वह जोर-जोर से हंस पड़ी। तब महात्माजी ने उससे पूछा कि तुमने मेरे में ऐसी क्या बात देखी कि इस तरह हंस पड़ी हो। वेश्या ने महात्माजी को टालने की कोशिश की, लेकिन महात्माजी के आग्रह पूर्वक पूछने पर वह बोली कि महात्माजी, बात वैसे कहने लायक नहीं है, लेकिन आपने आग्रह किया है तो कहती हूं। दरअसल जैसे आपकी मूंछों के दो बाल हैं, वैसे ही मेरी कुतिया की पूंछ पर भी दो बाल हैं। मेरे मन में यह सवाल उठा है कि दोनों में से कौन-से बाल अच्छे हैं। मैं यह जानना चाहती हूं। वेश्या की यह बात सुनकर महात्माजी भी ठठा कर हंस पड़े, लेकिन उन्होंने वेश्या की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वेश्या अपने रास्ते चली गई। अब वेश्या जब भी उधर से गुजरती, महात्माजी से यही सवाल पूछती। महात्माजी भी नित्य उत्तर में हस देते। यह सिलसिला चलता रहा। इस प्रकार वर्षों बीत गए। महात्माजी अत्यन्त वृद्ध हो गए और आखिर उनका अंत समय निकट आ गया। तब चेलों ने महात्माजी से उनकी अंतिम इच्छा पूछी। इस पर महात्माजी ने कहा कि अमुक वेश्या को बुलाकर मेरे पास लाओ। वेश्या को बुलाने की बात सुनकर चेले बड़े चकराए कि गुरूजी यह क्या कह रहे हैं? जो वेश्या आज तक उनकी मूंछों के बालों को लेकर हंसती आई है, उसको भला अब क्योँ बुला रहे हैं? दरअसल उस वेश्या का व्यवहार चेलों को बड़ा अखरता था, लेकिन गुरूजी के कारण वे कुछ बोल नहीं पाते थे। चेलों ने आखिर महात्माजी का आदेश मानकर उस वेश्या को बुला लाए। वेश्या आई और महात्माजी ने कहा कि अब जबकि मैं इस संसार को छोडक़र जा रहा हूं, तुम्हारे प्रश्र का उत्तर देना चाहता हूं। सुनो, मेरे ये बाल ही अच्छे हैं, क्योंकि इन्होंने आज तक मेरी आबरू रखी है। इससे पहले मेरा कुछ कहना अनधिकार चेष्ठा होती, क्योंकि आदमी के मन का कुछ ठिकाना नहीं, न जाने कब उसकी नीयत बदल जाए। लेकिन अब मैं जा रहा हूं और अधिकार पूर्वक कह सकता हूं। यों कहकर महात्माजी ने सदैव के लिए अपनी आंखें बंद कर ली। उनका उत्तर सुनकर न केवल वेश्या, बल्कि उनके चेले भी नतमस्तक थे।

