ज्यां घट बहुळी बुध बसै,रीत नीत परिणाम। घड़ भांजै, भांजै घडै, सकल सुधारै काम।।
ज्यां घट बहुळी बुध बसै,रीत नीत परिणाम। घड़ भांजै, भांजै घडै, सकल सुधारै काम।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 min read
ज्यां घट बहुळी बुध बसै,रीत नीत परिणाम।
घड़ भांजै, भांजै घडै, सकल सुधारै काम।।
जिनकी बुद्धि रीति-नीति के परिणाम वाली हो, यानि जो हर कार्य में बुद्धि का उपयोग जरूर करता हो, वे किसी न किसी तरह अपने सारे ही बिगड़े हुए काम सुधार ही लेते हैं। बुद्धि के बल से विकट से विकट परिस्थितियों से लड़ कर मौका आने पर मन चाही इच्छाओं की पूर्ति अवश्य होती हैं।
दिल्ली नगरी में तीन स्त्रियां रहती थी, जिनके नाम नारायणी, वैष्णवी और पार्वती थे। उन तीनों के न तो परिवार में कोई था और न कुछ पास में साधन ही था। वे कष्टपूर्वक पराये घरों में काम करके किसी तरह अपना पेट भरती थी। एक बार तीनों ने अत्यधिक दुखी होने पर पुण्यवृद्धि के लिए हिमालय में गलने - तपस्या करने का निश्चय किया। तीनों अपने अपने घर से अलग अलग निकल कर चली पड़ी और हिमायल पहुंची। हिमालय के राजा की आज्ञा के बिना घाटी मार्ग में कोई प्रवेश नहीं कर सकता था। अत: रक्षकों ने उनको रोक दिया। तब वे तीनों राजा के पास गई और उनसे आज्ञा पत्र लाई। तब रक्षक ने उनसे पूछा कि हिमालय में गलने से जो पुण्य तुहें प्राप्त होगा,उस पुण्य से या प्राप्त करने की इच्छा है। इस बारे अपना अपना संकल्प कहो,क्योंकि यहां का यही नियम है। तब सबसे पहले नारायणी ने कहा कि मेरा पति एकदम अनपढ और मूर्ख था। ऐसे पति के साथ रहकर मैंने बड़ा दुख पाया। अत: मुझे इस पुण्यफल से अगले जन्म में पंडित यानी विद्वान पति मिले। उसके बाद वैष्णवी नेअपना संकल्प कहा कि मेरा पति अत्यंत निर्धन था, अत:निर्धनता के कारण मैं दुखपाती रही। इस पुण्य से मुझे अगले जनम में धनवान पति मिले। आखिर में पार्वती ने अपना संकल्प उजागर किया कि मेरा पति अत्यंत कुरूप था, अत: समाज में मुझे लज्जित होना पड़ता था। मुझे इस पुण्य बल से कामदेव के समान सौभाग्यशाली रूपवान पति मिले। संयोग से उस समय लाभपुर निवासी श्रीकंठ नाम का ब्राह्मण भी वहां गलने-तपस्या करने के लिए आया था और वह भी उन तीनों के साथ उपस्थित था। उसने तीनों ही स्त्रियों के संकल्प बड़े ध्यान से सुने। फिर उसकी बारी आई। रक्षक ने उससेभी पूछा कि पंडितजी, अब आप भी एक ही वचन से अपना वांछित सुख मांग लीजिए। आप इस पुण्य से या प्राप्त करना चाहते हैं? श्रीकंठ ब्राह्मण निर्धनता और कलहकारिणी पत्नी से जीवन में बड़ा दुखी रहा था, अत वह हिमालय गलने आया था। जब रक्षक ने उससे संकल्प पूछा तो उसने कहा कि हिमालय के गलने के पुण्य से मैं अगले जन्म में इन तीनों स्त्रियों का पति बनूं। यह सुनते ही रक्षक बोला कि पंडितजी, आपकी बुद्धि की मैं सराहना करता हूं। आपने तो एक ही वचन से पांडित्य,धानिकत्व और रूप सौभाग्य तीनों ही वस्तुएं मांग ली। तपस्या और बुद्धि के बल से अगले जनम में उन्हें मन चाहा पुण्य फल मिला और संकल्प पूरा हुआ।