जद-जद ही दुरजण मिलै, जद उपजै विखवाद। उदैराज सज्जन प्रक्रित, ज्यां जाइ देइ स्वाद।।
जद-जद ही दुरजण मिलै, जद उपजै विखवाद। उदैराज सज्जन प्रक्रित, ज्यां जाइ देइ स्वाद।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 min read
जद-जद ही दुरजण मिलै, जद उपजै विखवाद।
उदैराज सज्जन प्रक्रित, ज्यां जाइ देइ स्वाद।।
जब-जब भी किसी को कोई दुर्जन व्यक्ति मिलता है, तब विषवाद उत्पन्न्न होताहै, अप्रियता बढती है। लेकिन कोई सज्जन स्वभाव का मिलता है, तो अमृत के समान मधुर लगता है।
प्राचीनकाल में वाराणसी में महापिंगल नाम का राजा था, जो अधर्म से अनुचितरूप से राज्य करता था। लोभ के वशीभूत हो वह पापकर्म करता था। प्रजा को ऐसे पीड़ता था, जैसे ऊख को। वह रौद्र स्वभाव का था। कठोर था और दुस्साहसी था।उसमें दूसरों के लिए तनिक भी दया नहीं थी। घर में स्त्रियों का लडक़े लड़कियों का,अमात्य-ब्राह्मणों का तथा गृहपति आदि का भी अप्रिय था। वह ऐसा था मानों आंख में धूल हो, भारत के कौर में कंकर हो अथवा एड़ी को बींधकर घुसा हुआ कंकर हो।महापिंगल के एक पुत्र हुआ, जो कि पिता के स्वभाव के विपरीत स्वभाव वाला था।महापिंगल चिरकाल तक राज्य करके मर गया तो सभी वाराणसी बड़े हर्षित हुए। खूब प्रसन्न हो एक हजार गाड़ी लकड़ी से पिंगल को जलाकर हजार घड़ों से आग बुझाई।फिर उसके पुत्र को राज्य पर अभिषिक्त किया। हमें धार्मिक राजा मिला है, यहसोचकर लोगों ने नगर में उत्सव की भेरी बजवाई। ऊंची ध्वजाओं और पताकाओं सेनगर को सजाया। दरवाजे-दरवाजे पर मंडप बनवाए। खील-पुष्प बिखेर सजे हुएमंडपों में बैठकर खाने-पीने लगे। नये राजा अलंकृत महातल पर बिछे श्रेष्ठ आसनपर बैठे, जिस पर श्वेत छत्र छाया हुआ था। अमात्य, ब्राह्मण, गृहपति, राष्ट्रिक तथा द्वारपाल आदि नये राजा को घेरकर खड़े थे। एक द्वारपाल थोड़ी ही दूरी पर हिचकियां लेता हुआ रो रहा था। तब नये राजा ने उसे देखकर पूछा कि मेरे पिता के मरने परसभी प्रसन्न हो उत्सव मना रहे हैं, लेकिन तू खड़ा राहे रहा है। या मेरा पिता तुझेही अधिक प्रिय था? द्वारपाल कहने लगा कि मैं इस शोक से नहीं रो रहा हूं किमहापिंगल मर गया। मेरे सिर को तो सुख हुआ है। राजा महापिंगल महल से उतरतेऔर चढते हुए हथौड़ी से चोट लगाने की तरह मेरे सिर पर आठ आठ ठोके लगाताथा। अब वे परलोक गए हैं तो उसी तरह यमराज के सिर पर भी ठोके लगाएगा।यमराज सोचेंगे कि यह हमें बहुत कष्ट देता है, और ऐसा सोचकर यमराज उसे फिरयहां धरती पर छोड़ जा सकते हैं। तब वह फिर मेरे सिर में ठोके मारेगा। मैं इस भयके कारण रो रहा हूं। तब नये राजा ने आश्वासन दिया कि राजा महापिंगल को लकडीके हजार भारों से जला दिया गया है। हजारों घड़ों से चिता हुआ बुझा दी गई है। जिस जगह जलाया गया, वह जगह खन की गई। जो परलोक जाते हैं, वे फिर उसी शरीर में नहीं आते। इसलिए तू मत डर। नये राजा उन्हें अमृत के समान मधुर लगने लगे। दुर्जन के मरने के बाद भी लोग उसे पसंद नहीं करते, उसके मरने के उत्सव मनाते है, ऐसा जीवन जीने से क्या अर्थ। अतः हमेशा मधुर रहें।

