Bansal Gotra Sati- Shri Rani Sati Dadiji (Jhunjhunu)

Bansal Gotra Sati (Sati's head peacock): Shri Rani Sati Dadiji (Jhunjhunu) बंसल गोत्र सती (सतियो की सिर मोर) : श्री राणी सती दादीजी (झुंझुनू)

SATI DEVIYON KI JAI

Marwari Pathshala

4/27/20241 min read

Shri Rani Sati Dadiji (Jhunjhunu)
Shri Rani Sati Dadiji (Jhunjhunu)

बंसल गोत्र सती (सतियो की सिर मोर) : श्री राणी सती दादीजी (झुंझुनू)

नारायणी बाई का जन्म कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि संवत 1338 को सेठ गुरसामल जी के घर महम डोकवा (ज़िला हिसार) में हुआ था। नारायणी बचपन से परम तेजस्वी एवं सकल गुणों का भण्डार थी। 5 वर्ष की आयु में सभी वेद शास्त्र पढ़ना आरम्भ कर दिया था। वि. सं. 1351, मंगसिर सुदी नवमी को हिसार के बंसल गोती जालीराम जी के पुत्र तनधनदास जी के साथ नारायणी का विवाह सम्पन्न हुआ। तनधनदास जी के पास एक घोड़ी थी जो बहुत ही सुंदर थी। हिसार के नवाब के पुत्र शेहज़ादे की नज़र तनधनदास जी की घोड़ी पर थीं। शहज़ादा एक रात जालीराम जी के घर छुपकर घोड़ी चुराने पहुँचता हैं। घोड़ी के हिनहिनाहट से घर के सभी सदस्य उठ जाते हैं। शेहज़ादा भागने का प्रयास करता ही है की तनधनदास जी भाला फेंकर शेहज़ादे को मर देते है। यह देख जालीराम जी अपने कुटुम्ब सहित झुंझुनूं बसने चले जाते हैं।

संवत 1352 मे तनधनदास जी, नारायणी बाई के संग मुकलावा लेकर देवसर की पहाड़ियों पर आये। उनके साथ विश्वास पात्र श्री राणा जी भी थे। नवाब की सेना ने सभी पर हमला कर दिया। नवाब झड़चंद अपने पुत्र की मृत्यु का बदला लेने आया था। तनधनदास जी सेवक राणा के साथ मिलकर झड़चंद की सेना से युद्ध लड़ते हैं। दुश्मनों ने धोके से तनधनदास जी पर वर करने से वे परलोक सिधार जाते हैं। यह देख नारायणी बाई ने पति का तलवार थामकर, एक ही पल में समस्त सेना का विनाश कर दिया।

सेवक राणा से कहकर नारायणी माँ ने चिता बनवाई थीं तथा नारायणी बाई, सेवक राणा की स्वामी भक्ति से इतना प्रभावित हुईं के यह आशिर्वाद दिया की संसार उन्हें "राणा- सती" के नाम से जानेंगे। वि. सं 1352, मंगसिर बदी नवमी के दिन संध्या ६:१० पर अपने चूड़े से अग्नि प्रगटा कर नारायणी बाई, सती हों गईं और राणाजी को आदेश दिया की जब चिता की भस्मी ठंडी हो जाए तब तनधन की घोड़ी लेकर आगे बढ़ते जाना, और जहा घोड़ी रुके वहां मंदिर माई का बनवाकर त्रिशूल रूप को स्थापित करना ।

इसी प्रकार माई का धाम झुंझुनू में बना । माँ नारायणी कलियुग की महासती कहलाती हैं।
जालीराम जी के वंश में १३ सतीयां हुईं थीं।

१) राणी सती - तनधनदास जी (वि.सं. 1352, मंगसिर बदी नवमी)

२) सीता सती - पुरुषोत्तम जी (वि.सं 1452, बैशाख सुदी छठ)

३) महादेई सती - बुद्धिप्रकाश जी (वि. सं. 1485, आषाद सुदी अष्टमी)

४) मनोहरी सती - भगवानदास जी (वि. सं. 1521, मंगसिर सुदी नवमी)

५) मनभावनी सती - दुर्गादास जी (वि. सं. 1568, माघ सुदी एकादशी)

६) यमुना सती - शंकरलाल जी (वि. सं. 1602, फाल्गुन बदी नवमी)

७) ज्ञानी सती - भीकनदास जी (वि. सं. 1648, ज्येष्ठ बदी नवमी)

८) पूरा सती - नानुराम जी (वि. सं. 1694, आश्विन सुदी अष्टमी)

९) विरागी सती - कालूराम जी (वि. सं. 1711, कार्तिक बदी नवमी)

१०) जीवणी सती - जानकीदास जी (वि. सं. 1758, मंगसिर सुदी तीज)

११) टीला सती - कानीराम जी (वि. सं. 1809, मंगसिर बदी नवमी)

१२) बाली सती - बजरंग लाल जी (वि. सं. 1838, चैत्र बदी दशमी)

१३) गूजरी सती - टिकमदास जी (वि. सं. 1868, भादी मावस)