खोटै मारग जावतां, टाळ सुमारग लाय। गुण वरणै अवगुण ढकै, मुरली मिंत कहाय॥

खोटै मारग जावतां, टाळ सुमारग लाय। गुण वरणै अवगुण ढकै, मुरली मिंत कहाय॥

MARWARI KAHAWATE

MARWARI PATHSHALA

10/27/20241 min read

खोटै मारग जावतां, टाळ सुमारग लाय।
गुण वरणै अवगुण ढकै, मुरली मिंत कहाय॥

जो बुरे या गलत रास्ते पर जाते हुए को टालकर अच्छे या सही रास्ते पर लाता है, जो गुणों को बढाकर अवगुण ढकता है, संसार में मनुष्य का वही सच्चा दोस्त कहलाता है।

एक साहूकार और राजा के बेटे में बड़ी दोस्ती थी। उन्होंने छुटपन में ही यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि विवाह के बाद जिसकी भी स्त्री पहले आए, वह पहली रात अपने पति के मित्र के पास रहे। संयोग से साहूकार के बेटे की बहू पहले आई। रात को दोनों पतिपत्नी महल में गए तो पति उदास मुंह चुपचाप बैठ गया। कुछ देर तो बहू भी चुपचाप बैठी रही, लेकिन फिर उसने अपने पति से पूछा कि सुहाग रात को ही आप इतने उदासयों है? या तो मैं पसंद नहीं आई या मेरे पिता ने जो दहेज दिया है वह आपको नहीं भाया! तब साहूकार के बेटे ने अपनी पत्नी को सारी बात बतलाई। इस पर वह बोली कि आप इसकी चिंता न करें, मैं सारी रात आपके दोस्त के पास रह आऊंगी। यों कहकर वह मिष्ठान्न का थाल सजाकर और हाथ में चौमुखा दीपक लेकर राजा के कुंवर के पास चली। रास्ते में उसे चार चोर मिले। चोरों ने उसे पकड़ लिया। उन्हें स्त्री और सोना दोनों मिल गए।स्त्री ने कहा कि सुनो, मैं अपने पति का एक कार्य सिद्ध करने जा रही हूं। मुझे जाने दो। आते वत तुम जैसा कहोगे वैसा कर लूंगी। पहले तो चोरों ने बात नहीं मानी, लेकिन उसके अधिक विश्वास दिलाने पर चोरों ने उसे जाने दिया। आधी रात को साहूकार के बेटे की बहू राजकुंवर के महल में पहुंची। उसे एकाएक सामने देख राजकुंवर चौक गया। वह बोला कि देवी, तू कौन है? बचपन का वादा राजकुंवर को याद नहीं रहा था। साहूकार के बेटे की स्त्री ने उसे अपने पति की कही हुई सारी बात कह दी। राजकुमार को उशकी बात सुनकर प्रसन्नता इस बात की हुई कि मित्र ने अपना वादा निभाया और शर्म इस बात की आई कि उन्होंने कैसी प्रतिज्ञा कर ली थी। राजकुंवर ने अपने मित्र की स्त्री को चुनरी उढाकर अपनी बहन बना लिया और उसका थाल हीरे-मोतियों से भरकर उसे समान सहित लौटा दिया। साहूकार के बेटे की स्त्री वहां से चलकर चोरों के पास आई और उसने चोरों से कहा कि अब चाहो तो तुम मुझे लूट लो। चोरों ने पूछा कि तुम कहां गई थी और या करके आई है? यह हमें सचसच बतला! साहूकार के बेटे की स्त्री ने आदि से अंत तक की सारी बात उनको बतला दी। तब चोरों ने सोचा कि जब राजकुंवर ने ही इसे बहन बनाकर चुनरी उडा दी तो हम भी इसे अपनी बहन ही बनाएंगे। यों आपस में सलाह करके उन्होंने अपने पास जो कुछ भी था, उसे देकर अपनी बहन बना ली और उसे अपने घर जाने को कह दिया। जब वह घर लौटी तो साहूकार का बेटा चौंक उठा कि अभी तो गई थी और अभी ही लौट आई! जब पत्नी ने सारी बात बताई तो उसे अपने मित्र पर बड़ा गर्व हुआ कि उसने प्रतिज्ञा की बजाय मित्रता को महत्व दिया और समान आचरण किया।