सत्त न छोड़े मित्त तूं, रिद्धि चौगुणी होय। सुख दुख रेखा कर्म की, टार सकै ना कोय।।
सत्त न छोड़े मित्त तूं, रिद्धि चौगुणी होय। सुख दुख रेखा कर्म की, टार सकै ना कोय।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 min read
सत्त न छोड़े मित्त तूं, रिद्धि चौगुणी होय।
सुख दुख रेखा कर्म की, टार सकै ना कोय।।
हे मित्र। तुम सत्य का त्याग मत करना, सत्य पर कायम रहना, इससे तुम्हारी रिद्धि चौगुनी होगी।
वैसे सुख और दुख तो भाग्य की दो रेखाएं हैं। जिसकी कोई टाल नहीं सकता।
एक साहूकार का लड़का कमाने के लिए परदेश गया। वहां उसका व्यापार अच्छा चल और खूब प्रतिष्ठा बढी। इसके साथ ही वहां एक अन्य सेठ लडके के साथ उसकी मित्रता हो गई। धीरे धीरे दोनों का प्रेम प्रगाढ हो गया। कई वर्षों के बाद प्रचुर धन कमाकर साहूकार का लड़का अपने घर लौटा। उसके माता पिता परम प्रसन्न हुए। उसका विवाह कर दिया गया और वह आनंद से रहना लगा। संयोग हुआ कि कुछ समय बाद उसके माता पिता का देहांत हो गया। अब घर का सारा भार साहूकार के लडके पर ही आ पड़ा। संकट कभी अकेले नहीं आता। लडके को व्यापार में घाटा भी लगा और व्यापारियों के रूपये देने रह गए। ऐसी स्थिति में अन्य कोई उपाय न देखकर साहूकार के लड़के ने अपने मित्र को सहायता के लिए पत्र लिखा कि यदि तुम चालीस हजार की हुंडी भेज सको तो मेरी इज्जत रह जाएगी। कासीद पत्र लेकर रवाना हो गया। जब साहूकार के लड़के के मित्र को उसका पत्र प्राप्त हुआ तो उसने जवाब में दो पत्र तैयार किए। कासीद को कहा गया कि उनमें से एक पत्र तुम साहूकार के लड़के को पहुंचते ही तत्काल दे देना और दूसरा पत्र उसके साथ न देकर अगले दिन देना। कासीदा दोनों पत्र लेकर लौट आया। उसने पहुंचते ही पहला पत्र साहूकार के लड़के को दे दिया और फिर अपने घर चला गया। लडके ने उस पत्र को खोला तो उसमें कुछ भी लिखा हुआ नहीं था, सफेद कागज पर अंकों में केवल साढा चौहत्तर लिखा हुआ था। वह सोचने लगा कि मित्र ने यह क्या लिख भेजा? काफी विचार करने के बाद उसने इस संख्या का रहस्य समझा। सात के अंक का मतलब था सत्त न छोड़े मित्त तूं। फिर चार के अंक के मतलब था रिद्धि चौगुणी होय। इसके बाद आधा प्रकट करने वाली दो रेखाओं का मतलब निकाला गया। इस प्रकार पत्र के अभिप्राय को पाकर सेठ के लडके का मन उत्साह से भर गया और वह प्रसन्नता अनुभव करने लगा। अगले दिन कासीद ने दूसरा पत्र भी उसे दे दिया और प्रकट किया कि भूल से ही यह मेरे पास रह गया। इस पत्र को खोला तो इसमें अस्सी हजार की हुंडियां निकली। इतनी रकम तो उसने मित्र से मांगी भी नहीं थी। साहूकार के लड़के ने सत्य परायण होकर उत्साह से व्यापार किया। उसने काफी नफा कमाया। मित्र को उसने उसकी रकम भी लौटा दी और उसी साख भी अच्छी तरह जम गई। इस तरह मित्र के सहयोग के कारण उसकी न केवल प्रतिष्ठा बची बल्कि वह दुगुनी चौगुनी हो गई।

