मन मैला तन ऊजळा, बुगला कैसा भेस। इणसूं तो कागा भला, भीतर-बाहर ऄक।।

मन मैला तन ऊजळा, बुगला कैसा भेस। इणसूं तो कागा भला, भीतर-बाहर ऄक।।

MARWARI KAHAWATE

MARWARI PATHSHALA

10/27/20241 min read

मन मैला तन ऊजळा, बुगला कैसा भेस।
इणसूं तो कागा भला, भीतर-बाहर ऄक।।

”मन तो मैला है, लेकिन तन उजला है। एकदम बगुले के समान। उसे देख हर कोई भ्रम में पड जाता है। इससे तो कौआ ही भला है, जो भीतर और बाहर से तो एक है। दिखावा तो नहीं करता है।

एक स्त्री बड़ी लडाकू हैं। किसी न किसी बात को लेकर वह हर किसी से लड लेती थी। लडऩे की आदत ऐसी पड़ गई थी कि बुढापा आ गया, लेकिन उसकी यह आदत नहीं छूटी। जब उसका अंत समय निकट आया और मरने को हुई तो उसने अपने बेटे की बहू को अपने पास बुलाया। उससे कहा कि बहू, मैं तो मर ही रही हूं, लेकिन तू मेरी एक इच्छा पूरी कर। बहू ने पूछा कि क्या इच्छा पूरी करूं? सास ने कहा कि मैं अपने जीवन में कभी भली नहीं कहलाई, इस बात का मुझे अफसोस है, सो तू मुझे भली कहला दे। बहू ने कुछ सोचकर हां भर ली। उसके यहां कई गायें थी और भैंसे थी, लेकिन वह किसी को छाछ की एक टोकसी नहीं डालती थी। बहू ने दूसरे दिन पास-पड़ोस की सब स्त्रियों को कह दिया। कि कल से छाछ के बर्तन भरवा कर ले जाया करो। पास-पड़ोस की स्त्रियां बड़ी खुशी हुई। दूसरे दिन सवेरे ही स्त्रियां छाछ लेने के लिए अपने-अपने बर्तन लेकर आ गई तो बहू ने कहा हिक अभी तो मैं दही बिलो रही हूं, अपने-अपने बर्तन रख जाओ और थोडी देर बाद आकर छाछ ले जाना। सारी स्त्रियां अपने-अपने बर्तन उसके यहां छोडकर चली गई। बहू ने उन सारे बर्तनों को उठाकर सास के झोंपडे के आगे रख दिया। फिर एक लाठी लेकर उन बर्तनों पर पिल पड़ी। जो मिट्टी के बर्तन थे, वे तो चूर-चूर हो गए और जो बर्तन पीतल आदि धातु के थे, वे टूट-फूट गए या फिर उनमें मोचें पड़ गई। कुछ समय बाद जब स्त्रियां छाछ लेने के लिए आई तो बहू ने आंखे तरेरते हुए गुस्से के साथ कहा कि वे तुम सबके टीकरे पडे, उठाकर ले जाओ। बड़ी आई है, यहां छाछ लेने। स्त्रियों ने अपने बर्तनों की दुर्गति देखी। जिनके मिट्टी के बर्तन थे, वे तो भला क्या ले जाती, लेकिन जो पीतल आदि के बर्तन थे, उन्हें उनकी मालकिनें बडबडाती हुई उठा-उठा कर ले जाने लगी। लेकिन सब यही कह रही थी कि भला क्या औरत है, इससे तो इसकी सास ही बहुत भली थी जो छाछ न डालती तो दूसरों के बर्तन तो नहीं फोड़ती थी। काफी देर तक यही क्रम चलता रहा। जब सब स्त्रियां चली गई तो बहू ने सास के पास जाकर पूछा कि क्यों सासजी, अब तो आपकों संतोष हो गया न? अब तो आप भली कहलाई। सास अपनी बहू के कारनामें से चकित थी।