आळस मत कर उदम कर, घर बैठणो म वंछ। सांइ समंद विरोळियो, तो घर आणी लंछ।।

आळस मत कर उदम कर, घर बैठणो म वंछ। सांइ समंद विरोळियो, तो घर आणी लंछ।।

MARWARI KAHAWATE

MARWARI PATHSHALA

10/27/20241 min read

आळस मत कर उदम कर, घर बैठणो म वंछ।
सांइ समंद विरोळियो, तो घर आणी लंछ।।

आलस्य मत करो, उद्यम करो। घर पर बैठने की मत सोचो, बाहर जाकर उद्योग करो। भगवान विष्णु ने भी उद्यम किया, समुद्र मंथन किया, तभी तो उनके घर लक्ष्मी आई।

किसी नगर में एक सेठ रहता था। उसका नाम पीपा था। पीपा के घर में प्रचुर संपत्ति थी और स्त्री बड़ी बुद्धिमती थी। एक दिन स्त्री ने पीपा को समझाया कि पिता की संपत्ति से आनंद भोगना ठीक नहीं है। मनुष्य को पुरूषार्थ करना चाहिए और संपत्ति को बढाना चाहिए। इस पर पीपा ने परदेश जाकर धन कमाने का निश्चय किया। जब वह परदेश जाने को तैयार हुआ तो उसकी पत्नी पांच रत्न उसकी जांघ में छिपा दिए, जिससे कि कोई उन्हें देख न सके और समय पडऩे पह वह धन काम आए। फिर पीपा सेठ ने अपनी गाड़ी माल से भर ली और उससे बेचने के लिए घर से रवाना हो गया। पीपा दूसरे नगर में पहुंचा। वहां माल महंगे भावों में बिका हुआ अच्छा नफा हुआ। फिर तो पीपा सेठ उसी नगर में ठहर गया और वहां व्यापार करना लगा। कुछ ही दिनों में वह बड़ा व्यापारी बन गया और उसने काफी संपत्ति अर्जित कर ली। परंतु वह एक वेश्या के घर जाने लगा। उसका नाम सारां था। वेश्या ने धीरे धीरे उसका सरा माल हरण कर लिया। जब पीपा के पास कुछ नहीं बचा, तो वह वेश्या के द्वारा निकाल दिया गया। ऐसी स्थिति में पीपा अपने नगर की ओर रवाना हुआ। लेकिन वेश्या बड़ी चालाक थी। उसने गुप्त रूप से अपना आदमी पीपा के पीछे लगा दिया और उसे समझा दिया कि मार्ग का नाला पीपा कूदकर लांघ जाए तो उसे किसी तरह वापस बुला लिया जाए, क्योंकि पास में धन होने से ही वह ऐसा कर सकेगा। इसके विपरीत यदि वह पानी में चलकर नाला पार करे तो उसे जाने दिया जाए। अत: पीपा मार्ग में चला जा रहा था और वेश्या का आदमी उसके पीछे लगा था। मार्ग में पानी का नाला आया तो पीपा कूदकर उसे पार चला गया। इस पर वेश्या के आदमी ने उसे वहीं रोक लिया और वह अनुनय विनय करके उसे वापस ले आया। लेकिन वेश्या ने चालाकी से उसकी जंघा में छिपे हुए पांचों रत्नों का पता लगा लिया और उन्हें हड़प लिया। अब पीपा के पास कुछ न बचा था। इसलिए उसे फिर निकाल दिया। पीपा अपने नगर की ओर चला तो वेश्या ने फिर उसके पीछे अपना आदमी लगा दिया। इस बार पीपा ने मार्ग के नाले को पानी में प्रवेश करके पार किया, इसलिए उसे जाने दिया गया। पीपा ने घर पहुंचकर अपनी पत्नी को सारी आपबीती सुनाई तो उसने कहा कि कोई चिंता की बात नहीं, मैं सारां वेश्या को समझ लूंगी।

सेठ की पत्नी यानी सेठानी ने सांरा वेश्या को मजा चखाने के लिए एक बंदर पाला। उसने बंदर का इस प्रकार सिखाया कि वह दी हुई वस्तु को निगल लेता था और फिर कहने पर उसे उगल भी देता था। इस बंदर को साथ देकर सेठानी ने अपने पति को फिर वेश्या के यहां भेजा और उसे ठगने की युक्ति समझा दी। पीपा सेठ बंदर को लेकर सारां वेश्या के घर गया। वेश्या ने सोचा कि बनिया फिर धन लाया है, इसलिए उसका बड़ा सम्मान किया। तब पीपा ने यह प्रकट किया मेरा खजाना तो यह बंदर ही है। मांगने पर बंदर मोहरे देता है। परीक्षा के लिए उसने बंदर से दस सोने की मोहरें उगलवा दी, जो उसने पहले से ही गुप्त रूप से निगलवा दी थी। इब तो वेश्या का मन बंदर लेने में ललचाया। बंदर के बदले में पीपा ने वेश्या की समस्त संपत्ति ले ली और वह उसे दे दिया। पीपा ने कहा कि सात दिन तक बंदर की पूजा की जाए, फिर वह मुंहमांगा धन देगा। इसके बाद पीपा सेठ उस वेश्या का सारा धन लेकर अपने घर लौट आया और सेठ सेठानी को सारा किस्सा सुना दिया। उधर सारां ने सात दिन तक बंदर की पूजा की और उसे खूब खिलाया-पिलाया। आठवें दिन जब उसने बंदर से धन मांगा तो वहं क्या थ। इस पर वेश्या नेबंदर को डराया तो बंदर ने उसका मुंह नोच लिया और वह भाग गया। सारां का बुरा हाल हुआ। उसने समझा लिया कि पीपा ने उससे बदला लिया है। आखिर सारां ने पीपा को बुलाने के लिए अपना आदमी भेजा तो पीपा सेठ ने जवाब दिया कि मैं तो अब उस नगर में कभी पांव रखने वाला नहीं। इस तरह वेश्या को उसके किये का फल मिल गया।