संगत बडां की कीजियै, बढत-बढत बढ जाय। बकरी हाथी पर चढी, चुग-चुग कूपळ खाय।।

संगत बडां की कीजियै, बढत-बढत बढ जाय। बकरी हाथी पर चढी, चुग-चुग कूपळ खाय।।

MARWARI KAHAWATE

MARWARI PATHSHALA

10/27/20241 min read

संगत बडां की कीजियै, बढत-बढत बढ जाय।
बकरी हाथी पर चढी, चुग-चुग कूपळ खाय।।

संगत बड़ों की करनी चाहिए, जिससे कि वृद्धि को प्राप्त हुआ जा सके।

अब देखिए, बकरी हाथी पर चढ गई और चुन चुन कर कोंपलें खाने लगी।

यह संगत से ही संभव हुआ। बड़े चाहे शक्तिशाली हो, धनी हो, समझदार हो, चतुर हो, प्रतिभाशाली हो इनकी संगत से कई ज्ञान और चीजें आसानी से बिना अधिक श्रम के प्राप्त हो जाती है।

एक जाट का बेटा अपने रेवड़ को चराने के लिए प्रतिदिन जंगल में ले जाता था। रेवड़ में एक बूढी बकरी भी जाती थी। उसके अंग शिथिल हो चुके थे और वह कठिनाई से चल पाती थी। उसके दांत भी घिस गए थे, अत: उसे चरने में भी कठिनाई होती थी। एक सांझ जाट का बेटा अपने रेवड़ को लेकर जंगल से लौट रहा था। उसे घर पहुंचाने की जल्दी थी, लेकिन बूढी बकरी बहुत ही धीरे-धीरे चल रही थी। ऐसी हालत में उसने उसे जंगल में ही छोड़ दिया और अपने रेवड़ को लेकर घर आ गया। बेचारी बूढी बकरी रात के समय जंगल में अकेली रह गई। यहां जंगली जानवरों का पूरा भय था। इधर-उधर नजर फैलाने पर उसे सिंह का एक पदचिन्ह नजर आया। बकरी उसी के पास बैठ गई। कुछ समय बाद वहां एक गीदड़ आया। बकरी को जंगल में अकेली पाकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ कि भगवान ने आज आसनी से भोजन भेज दिया। वह बोला कि बुढिया, तू यहां अकेली कैसे बैठी है? बकरी ने सिंह का पदचिन्ह दिखाते हुए कहा कि इस चिहन वाला जानवर मुझे यहां बिठा गया है और अभय दान दे गया है। जब गीदड़ ने वहां सिंह के पदचिन्ह देखा तो वह डर गया और भाग गया। कुछ समय बाद बकरी के पास अन्य जंगली जानवर भी आए, लेकिन उसने सबको सिंह का पदचिन्ह का भय दिखलाकर चलता कर दिया। अंत में वहां स्वयं सिंह आ पहुंचा। उसने जंगल में अकेली बकरी को देखकर आश्चर्य हुआ और पूछा कि तुम अब तक सुरक्षित कैसे रह सकी? बकरी ने नम्रता पूर्वक अपने कष्ट की कहानी सिंह को सुनाई और कहा कि आपके पदचिन्ह के प्रताप से मेरे प्राण बच सके हैं। ऐसा सुनकर सिंह को बूढी बकरी पर दया आ गई और उसे अभय दान मिल गया। लेकिन बकरी ने सिंह से प्रार्थना की कि मुझे जवित रहने में कोई सुख नहीं है, क्योंकि न मैं चल सकती हूं और न ही आसानी से कुछ चर सकती हूं। इस पर सिंह ने कहा कि मैं तुम्हारे लिए सभी प्रबंध कर दूंगा। उसी समय उधर एक हाथी निकला। जब उसने सिंह को देखा तो वह घबरा गया। सिंह ने उसे पुकार कर कहा कि डरो मत, तुम्हें अभय दान देता हूं। लेकिन तुम्हें एक सेवा कार्य करना पड़ेगा। तुम्हे इस बूढी बकरी को अपनी पीठ पर चढाकर घुमाना होगा और जहां चलने को यह कहे, वहीं जाना होगा। इस प्रकार बकरी के लिए सवारी और कोमल पत्ते खाने का पूरा प्रबंध हो गया। वह हाथी की पीठ पर चढ गई और वहीं से वृक्षों के कोमल-कोमल पत्ते खाने लगी