नह तीरथ जननी समो, जननी समो न देव। इण कारण कीजै अवस, सुभ जननी री सेव।।

नह तीरथ जननी समो, जननी समो न देव। इण कारण कीजै अवस, सुभ जननी री सेव।।

MARWARI KAHAWATE

MARWARI PATHSHALA

10/27/20241 min read

नह तीरथ जननी समो, जननी समो न देव।
इण कारण कीजै अवस, सुभ जननी री सेव।।

माता के समान कोई तीर्थ नहीं है और माता के समान कोई देवता नहीं। इसलिए सभी को चाहिए कि वे माता की सेवा अवश्य करें।

एक बार सभी देवता इस बात पर विचार करने लगे कि यज्ञ, पूजन, हवन आदि शुभ कार्यों में सबसे पहले किसकी पूजा हो? हरेक देवता यही चाहता था कि यह समान उसे मिले। जब बहुत देर के बाद भी इस प्रश्न का हल नहीं निकला तो सबने मिलकर यह तय किया कि ब्रहृाजी के पास चल कर इस मामले केा निपटाया जाए। वे जो भी कहेंगे, सभी उनकी आज्ञा मानकर स्वीकार कर लेंगे। देवता आखिर ब्रहृाजी के पास पहुंचे। सभी देवताओं की बात ब्रहृाजी ने बड़े ध्यान से सुनी और फिर कुछ विचार कर बोले कि जो पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले मेरे पास पहुंचेगा, वही सबसे बड़ा है और उसी की पूजा सबसे पहले हुआ करेगी। ब्रहृाजी के यह कहने पर देवताओं में भाग दौड़ शुरू हो गई। सभी अपने अपने वाहन पर बैठकर बिना इधर-उधर देखे पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए रवाना हो गए। सभी इस कोशिश में लग गए कि सबसे पहले वही पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे। गणेश की ओर किसी का भी ध्यान नहीं था। सोर देवता चले गए, सिर्फ अकेले गणेश वहां बच गए। वे सोचने लगे कि अब क्या किया जाए? एक तो उनका भारी भरकम तोंद वाला शरीर दूसरा उनका वाहन चूहा। वह भला तीव्र गति से दौडऩे वाले दूसरे देवताओं के वाहन की बराबरी कैसे कर सकता है। अचानक उन्हें एक अत्यंत सरल उपाय सूझा। वह लपक कर चूहे के ऊपर बैठे और सीधे कैलाश की ओर रवाना हो गए। वहां पहुंचे तब देखा कि उनके पिता शिव ध्यान में बैठे हैं और माता पार्वती काम में लगी हुई हैं। गणेश ने अपनी मां से कहा कि माता, आप चलकर तनिक पिताजी के पास बैठिए, मुझे जरूरी कार्य हैं मां पे पूछा, पर उसने कारण नहीं बताया। पुत्र की प्रसन्नता के लिए पार्वती भगवान शिव के पास बैठ गई। गणेश ने जमीन पर लेटकर माता पिता को साष्टांग प्रणाम किया और फिर अपने चूहे पर बैठकर रवाना हो गए। जब देवता पृथ्वी की परिक्रमा करके पहुंचे तो उन्होंने देखा कि गणेश तो वहां पहले से ही बैठे हैं। सभी ने सोचा कि यह यहां से कहीं गए भी नहीं होंगे। जब ब्रहृाजी ने कहा कि सबसे पहले गणेश की पूजा होगी तो सभी देवताओं का बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा कि आपने तो पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले आने वाले को यह सम्मान देने को कहा था। ब्रहृाजी बोले कि माता पृथ्वी का और पिता नारायण का स्वरूप होता है। इसने माता पिता की सात बार प्रदक्षिणा की है अत पृथ्वी की सात बार प्रदशिक्षणा की है।

माँ में ही सारे तीर्थ और माँ में सारे देवी देवताओं का निवास, जिसने ये जान लिया और अपना लिया उसे गणेश की तरह सम्मान और सफलता मिलेगी और वह भी कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच ।।