पापी पुन्न करै नहीं, और न करबा देय। खेतां में अड़वा खड़ा चरै न चरबा देय।।

पापी पुन्न करै नहीं, और न करबा देय। खेतां में अड़वा खड़ा चरै न चरबा देय।।

MARWARI KAHAWATE

MARWARI PATHSHALA

10/27/20241 min read

पापी पुन्न करै नहीं, और न करबा देय।
खेतां में अड़वा खड़ा चरै न चरबा देय।।

जो पापी होता है, वह स्वयं तो पुण्य करता नहीं है और औरों को भी नहीं करने देता है। ठीक उसी तरह जिस तरह खेतों में खड़े बिजूके न तो खुद चरते हैं और न किसी को चरने देते हैं।

एक गांव में एक पंडितजी कथा बांचा करते थे। गांव के लोगों में पंडितजी में बहुत श्रद्धा थी और वे बहुत उत्साह से कथा सुना करते थे। कथा पर जो चढावा आता,उससे पंडितजी का काम खूब अच्छी तरह चल जाता था। इसलिए पंडितजी को किसी बात की चिंता नहीं थी। लेकिन कलियुग पंडितजी से बहुत नाराज था। कारण यह कि पंडितजी सत्युग की कथा बांचा करते थे और कलियुग के बारे में बताते हुए उसे बुरा बताते थे। आखिर एक दिन कलियुग मनुष्य के वेश में पंडितजी के पास पहुंचा। उसने पंडितजी से कहा कि पंडितजी तुम सत्युग की कथा बांचते हो। या तुम्हे मालूम नहीं कि मैं कलियुग हूं और आजकल सर्र्वत्र मेरा राज्य है। इसलिए तुम मेरी कथा बांचा करो। यह सुनकर पंडितजी ने उसको उतर दिया कि शास्त्रों में जो लिखा है, मैं तो वही बांचता हूं और वही बांचूगा। कलियुग ने उन्हें समझाने बुझाने की कोशिश की। लेकिन पंडितजी नहीं माने सो नहीं माने। इससे कलियुग पंडितजी से रूष्ट हो गया। वह जाते जाते बोला कि पंडितजी तुमने मेरा कहा नहीं माना, इसका परिणाम अब तुहें भुगतना पडेगा। पंडितजी बोले कि मैं तो धर्म पर चल रहा हूं और शास्त्रों में जो लिखा है उसके अनुसार ही कथा कहता हूं। इससे कलियुग और भी नाराज हो गया। दूसरे दिन जब पंडितजी कथा बांच रहे थे तो कलियुग वहां एक कलाल के रूप में प्रकट हुआ। कथा के बीच ही वह पंडितजी के सामने पहुंच कर कड़े स्वर में कहने लगा कि तुम्हारी तरफ शराब के जो रूपये बहुत दिनों से बाकी चले आ रहे हैं, वे आज तुम्हे देने पडेंगे। शराब पीते वक्त तो तुम्हे बडा लुत्फ आया और अब पैसे देने में जी चुराते हो। सारे लोगों के बीच कलाल की बात सुनकर पंडितजी हके बके रह गए। कथा सुनने वालों को भी बड़ी ग्लानि हुई। अगलेे दिन बहुत थोड़े ही लोग कथा सुनने के लिए आए। पंडितजी ने कथा शुरू की ही थी कि कलियुग एक कसाई के रूप वहां उपस्थित हुआ पंडित से मांस के पैसे मांगने लगा। पंडितजी फिर हके बके हो गए। सारे लोग यह कहते हुए उठ गए कि हम तो पंडितजी को बहुत भला मनुष्य समझते थे, लेकिन यह तो निरा बगला भगत निकला। यह तो छिपकर मांस और मद्य का सेवन करता है।लेकिन आज आखिर इसकी पोल खुल ही गई। ऐसे पंडित से कौन कथा सुनेगा? अब तो इस गांव में कोई मांगे से एक मुटठी आटा भी नहीं देगा।