बड़ा बडाई ना करै, बडा न बोलै बोल।। हीरो मुख सूं ना कहै, लाख हमारो मोल।।
बड़ा बडाई ना करै, बडा न बोलै बोल।। हीरो मुख सूं ना कहै, लाख हमारो मोल।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 min read
बड़ा बडाई ना करै, बडा न बोलै बोल।।
हीरो मुख सूं ना कहै, लाख हमारो मोल।।
‘‘जो वास्तव में बड़ा होता है वह न तो अपने को बड़ा कहता है औ न ही बड़े बोल बोलता है। सही है, भला हीरा कब किसी से अपने मुंह से कहता है मेरा मोल लाख रूपये है।’’
एक बार कैलाश पर्वत पर शिवजी समाधि लगाये बैठे थे। उनके पास ही पार्वतीजी भी बैठी थी। अचानक वहां समुद्र के कुछ झाग आकर गिरे। यह देख पार्वती ने शिव से पूछा कि ये क्या है? तब शिवजी ने बतलाया कि एक बड़े मच्छ ने अपनी पूंछ को बड़े जोर से इधर-उधर पटका है और उसी के वेग से समुद्र का पानी उछलकर यहां तक आ गया है। शिवजी की बात सुनकर पार्वती चकित हो गई। पार्वती ने शिवजी से पूछा कि क्या यह मच्छ आपसे भी बड़ा है? शिव मुस्कुराये और कहा कि हो सकता है मच्छ बड़ा ही हो, जाकर तुम देख आओ और अपना संदेह मिटा लो। पार्वती से रहा नहीं गया। वह वहां से चलकर उस मच्छ के पास पहुंची। उसने मच्छ से पूछा कि क्या तुम सबसे बड़े हो? मच्छ ने कहा कि नहीं, मैं सबसे बड़ा नहीं हूं। मेरे से बड़े-बड़े मच्छ तो इस समुद्र में ही रहते है, इसलिए समुद्र ही बड़ा है। तब पार्वती ने वही प्रश्र समुद्र से किया। समुद्र ने कहा कि मैं तो धरती का ही एक हिस्सा हूं, इसलिए धरती ही मुझसे बड़ी है। पार्वती ने धरती से जाकर पूछा तो धरती ने कहा कि मैं तो शेषनाग के फनों पर टिकी हूं, इसलिए शेषनाग ही मुझसे बड़ा है।पार्वती शेषनाग के पास गई तो शेषनाग ने कहा कि मैंने सत के बल पर ही पृथ्वी को अपने फनों पर उठा रखा है, इसलिए सत के आश्रित हूं। इसलिए वचन मुझसे बड़ा है। जब पार्वती ने वचन से पूछा तो वचन ने कहा कि मेरी उत्पति तो शब्द से हुई है, अत: शब्द मुझसे बड़ा है। पार्वती शब्द के पास गई तो शब्द ने कहा कि मेरे जनक तो भगवान सदाशिव हैं, वे ही सबसे बड़े है अत: तुम उन्हीं के पास जाओ। शब्द की बात सुनकर पार्वती को अहसास हो गया कि बड़ा कौन है और वह यह भी समझ गई कि भगवान शिव क्यों बड़े है।