आतम बळ आधार, सदा भरोसो सत्त रो। होवै बिन हथियार, के करसी जग काळिया।।
आतम बळ आधार, सदा भरोसो सत्त रो। होवै बिन हथियार, के करसी जग काळिया।।
MARWARI KAHAWATE
MARWARI PATHSHALA
10/27/20241 min read
आतम बळ आधार, सदा भरोसो सत्त रो।
होवै बिन हथियार, के करसी जग काळिया।।
जिसका आधार आत्मबल है और जिसको भरोसा सदा सत्य का है उसे किस बात का डर? वह हथियार बिना भी हो तो कोई उसका क्या बिगाड़ सकता है?
तात्पर्य यह कि सन्मार्ग पर चलने वालों की सदा जीत होती है।
एक बार एक राजा के राज्य में वर्षा नहीं होने के कारण दुर्भिक्ष के लक्षण दिखने लगे। राजा ने अनेक यज्ञ हवन करवाए, लेकिन उनका भी कुछ परिणाम नहीं निकला। अब राजा को अत्यंत घबराहट हुई। उसने सोचा कि यदि अकाल पड़ गया तो सारे राज्य में हाहाकार मच जाएगा। प्रजा के दुख का ठिकाना नहीं रहेगा। अत उसने सोचा कि नगर के सारे पंडितों को, मंदिरों के पुजारियों को तथा दानी और पुण्यात्मा कहे जाने वाले लोगों को बुलाकर उनसे सलाह करनी चाहिए कि इस स्थिति में क्या किया जाए। उसने ऐसा ही किया। नगर के काफी लोगों को बुलाया गया। बहुत देर तक विचार विमर्श के बाद सब की यह राय रही कि राज्य के सारे लोग अपना अपना किया हुआ पुण्य वर्षा के निमित्तदान में देंतो भगवान इंद्र प्रसन्न होकर अवश्य वर्षा करेंगे। एक एक करके हर एक पंडित, पुजारी ने अपनी अपनी पूजा, भजन ध्यान, नाम स्मरण आदि द्वारा किये हुए अपने पुण्य के दान की घोषणा की। हर एक श्रीमंत, सेठ साहूकार ने अपने अपने द्वारा किये गये दान रूपी पुण्य वर्षा के निमित्त देने का ऐलान किया। लेकिन फिर भी कुछ परिणाम नहीं निकला। राजा की चिंता और भी अधिक बढ गई। अब क्या होगा? आखिर क्या किया जाए कि भगवान इंद्र प्रसन्न हो और राज्य में भरपूर वर्षा कर दें? तब एक साधारण सा वैश्य अपने हाथ में तराजू पकड़ कर कहने लगा कि हे भगवान। तू साक्षी है, यदि मैंने अपने व्यापारिक लेन देन में तराजू की डंडी सदा बराबर रखी हो, अपने जीवन में कभी किसी को ठगा नहीं हो, कभी किसी को धोखा नहीं दिया हो, कभी किसी के साथ छल कपट नहीं किया हो तथा अपनी न्याय बुद्धि की तुला सदा इस तराजू की डंडी के समान रखी हो तो वर्षा हो जाए। उसका यह कहना था कि आकाश में बादल घिर आने लगे। लोग आश्चर्य से देखने लगे। राजा बड़ा अचंभित हुआ कि इसके कहते ही वर्षा का रंग बनने लगा। थोडी ही देर में पूरा आकाश बादलों से छा गया और देखते देखते जोरों से वर्षा होने लग गई। राजा ने बड़ी राहत की सांस ली अब उसके राज्य में दुर्भिक्ष की आशंका नहीं रही। लेकिन वह यह बात समझ गया कि उसके राज्य में धरम पर चलने वाला यही एक सच्चा आदमी है। उसने उस वैश्य जिसका नाम तुलाधार था को आदर के साथ बहुत मान सम्मान दिया।