Marwari Muhavare (य-व)
Marwari Muhavare (य-व) - Marwari proverbs (Muhavare) that reflect the wisdom, humor, and values of Marwari culture
MARWARI MUHAVARE
Marwari Pathshala
10/21/20241 min read
य-व
1. "रांड स्याणी हुवै पण कसम मर्यां फेर"
- Meaning: A widow may gain wisdom with age, but she still remains bound by her vows.
- Usage: This proverb highlights that certain conditions or limitations persist despite experience or age, especially when bound by traditions or promises.
2. "रूप की रोवै करम की खावै"
- Meaning: One may cry for beauty, but it's fate that feeds.
- Usage: This emphasizes that while beauty may be admired, it's one’s destiny or efforts that ultimately determine well-being and sustenance.
3. "रूपयो होवै रोकड़ी सोरो, आवै सांस, संपत होय तो घर भलो, नहीं भलो परदेस"
- Meaning: If one has money, there’s comfort in staying; if wealth is limited, going abroad (for work) is better.
- Usage: Reflects a practical approach toward earning a living—when resources are lacking at home, it might be wise to seek opportunities elsewhere.
4. "रोता जां बै मरेडां की खबर ल्यावैं"
- Meaning: The weeping ones often bring the bad news.
- Usage: This proverb is used to indicate that those who complain or show distress often bring negative news or dwell on difficulties.
These proverbs offer insights into Marwari perspectives on wisdom, practicality, fate, and resilience. Each one conveys a unique lesson on balancing life’s challenges with wisdom and patience.
या जांघ उघाड़ै तो या लाजां मरै, या उघाड़ै तो या।
या देवी बोळा भगत तार्या है।
या नै आपकी यारी सैं ही काम।
या बेटी अर यो दायजो।
यारी को घर दूर है | हिंदी – दोस्ती निभाना कठिन है।
यो टोरड़ो तो दोरो ई पार होसी।
यो ही म्हारो आसरो, के पीर के सासरो।
रंकी रीझै तो रो दे।
रजपूत की जात जमी ।
रजपूती धोरां मे रलगी, ऊपर चढ़गी रेत।
रमता राम, बैठ्या सोई मुकाम।
रलायां हाथ धुपै।
रहण नै तो टापरी कोन्या, सुपनू देखै महलां को।
रही घणां दिन राज कै, बे इज्जत बरती। जाती करै जुहराड़ा, धणियां सू धरती।
रांड आगै गाळ कोनी ।
रांड के सुहागन पगां लागी, मेरे जिसी तूं भी होज्या।
रांड कै मार्योड़ै की अर गांव में फिर्योडै की दाद-फिराद कोनी।
रांड स्याणी तो होवै पण होवै खसम मर्यां पाछै।
राई का भाव रात ही गया।
राई बिना किसो रायतो?
राख पत, रखाय पत | हिंदी– दूसरोँ का सम्मान करने पर वे भी सम्मान करते हैँ।
राग, रसोई पागड़ी, कदे कदे बण ज्यावै।
राजपूती धोरां में रळगी, ऊपर चढ़ गई रेत ।
राजा करै सो न्याव, पासो पड़ै सो डाव ।
राजा के सोनै का पागड़ा? कह, आज के दिन तो भलांई गुड़ा का कराल्यां।
राजा कै घर मोतियां की के कमी है?
राजा गढ़ां में, जोगी मढां में।
राजा जोगी अगन जळ, इण की उलटी रीत । डरता रहियो परसराम, ये थोडी पाळै प्रीत ।।
राजा बांधै दल, बैद बांधै मल।
राजा मान्या सो मानवी, मेवां मानी धरती।
राजा राज पिरजा चैन।
राजा री आस करणी, पण आसंगो नीं कारणों ।
राजा रूसै तो आपको गांव राखै।
राजा सल्ला को, पीसो पल्ला को।
राजा, जोगी, अगन, जल, इण की उलटी रीत। डरता रहियो परसराम, ये थोड़ी पालै प्रीत।
राड करै तो बोलै आडो।
राड को घर हांसी, रोग को घर खांसी।
राड़ सैं बाड़ भली ।
राणी नै काणी मना कहो।
रात अंधेरी, मा परोसगारी।
रात आगै उँवार कोनी, रांड ऊं बड्डी गाळ कोनी ।
रात आगै उँवार कोनी।
रात की नींद गई, दिन की भूख गई।
रात च्यानणी, बात आँख्या देखी मानणी | हिंदी– चांदनी रात ही अच्छी होती है तथा आँखोँ देखी बात पर ही विश्वास करना चाहिए।
रात नै रात्यूंदो, दिन में सूजै ई कोन्या।
रात बी खोई, जगात भी दी।
राधो भलो न पिरागो।
राबड़ी के कहै, मन्नै दांतां सै खावो।
राबड़ी को नांव गुलसफ्फा ।
राबड़ी बी कहै मन दांतां सै खावो ।
राबड़ी में गुण होता तो ब्या में नां रान्धता ।
राबड़ी में राख रांधै, चून पाटै पीसती । देखो रै या फ़ूड रांड, चालै पल्ला घींसती ।।
राम कह कर रहीम के कहणूं?
राम की डांग पर बेड़ो हैं।
राम कै घर को राम नै ही बेरो।
राम को अर राज को सिर ऊपर कै गैलो है।
राम घणी के गांव घणी।
राम झरोखै बैठ कर, सबका मुजरा लेय। जैसी देखै चाकरी, जैसा ही भर देय।
राम दे तो बाड़ में ही देदे।
राम नै लंका लूट्यां ही जुग बीतगा।
राम पुराणी बाजरो, मींडक चाल जंवार। इक्कड़ दुक्कड़ मोठिया, कीड़ी नाल गंवार।
राम बनाई जोड़ी, एक काणूं अर एक कोढ़ी ।
राम रूस्योड़ो बुरो।
रामजी ऊपर चढ्यो देखै है।
रामजी को नांव सदा मिसरी, जब चाखै जब गूंद गिरी।
रामदेव जी ने ढेढ़ इ ढेढ़ मिल्या ।
रामदेवजी नै मिल्या जका ढेढ ही ढेढ।
राम–राम चौधरी, सलाम मियांजी। पगे लागूं पांडिया, दंडोत बाबाजी।
रामूं कहो भावं उजाड़ कहो।
रावली घोड़ी, बावला हसवार।
रावलै को तेल पल्लै में ई चोखो।
रिपिया तेरी रात, दूजो नर जलम्यो नहीं। जे जलम्या दो च्यार, तो जुग में जीया नहीं।
रिपियो हाथ को मैल है।
रूअं धूअं अर मूंवां, जाड़ो कोनी लागै।
रूप का रूड़ा रोहीड़ै का फूल।
रूप की धणियाणी पाणी भरबा जाय।
रूप की रोवै करम की खावै । हिंदी – रूपवती स्त्री भी दुःखी रहती है परन्तु कर्मशील कुरूप स्त्री भी भूखी नहीँ रहती।
रूपयो होवै रोकड़ी सोरो, आवै सांस, संपत होय तो घर भलो, नहीं भलो परदेस।
रेवड़ में कुण गयो? बाबो! कह, बाबो भेड्या सैं भी बूरो।
रोंवता जांय बै मरेडां की खबर ल्यावैं ।
रोगी की रात अर भोगी को दिन करड़ो नीसरै।
रोज में रोवण जोगो न, गीत में गावण जोगो न।
रोटी साटै रोटी, के पतली के मोटी।
रोतो जाय अर मारतो जाय।
रोयां बिना मा बी बोबो कोनी दे।
रोयां राबड़ी कुण घालै | हिंदी – परिश्रम से सब कुछ प्राप्त होता है, केवल रोने से कुछ नहीँ होता।
रोवती जाय, मुवै की खबर ल्यावै।
रोवती रांड सासरे में के न्याहल करै ।
लंका में किसा दालदी कोनी बसै।
लंका में बावन हाथ का।
लंघन सै लापसी चोखी।
लखण लखेसरी का, करम भिखारी का।
लजवन्ती घर में बड़ी, फूड़ जाणै मेरे सै डरी।
लदणिया ई लद्या करैं है।
लद्योड़ा ही लदै।
लरड़ी पर ऊन कुण छोड़ है?
लहसण बी खायो, रोग बी को गयो ना।
ला कोई बीरन ऐसा नर, पीर बबरची भिस्ती खर।
लांबी बां दूर तांई पसरै।
लाखां पर लेखो, क्रोडां पर कलम।
लागै जठे पीड़।
लागै जैंकै करकै।
लाग्यो अर भाग्यो।
लाग्यो तो तीर, नहीं तुक्को ही सही।
लाज तो आंख्या की होय है।
लाठी टूटै न भांडो फूटै।
लाडू की कोर चाखै जठे ही मीठी।
लाडू फूटै उठे तो भोरा खिँडै ही।
लातां को देव बातां सै कोनी मानै।
लाबद्या को ओड कोनी।
लाम को अर काम को बैर है।
लाय लाग्यां किसो कुवो खुदै?
लालबही छप्पन रो पानो, बोहरो रोवै छानो-छानो ।
लालाजी करी ग्यारस अर बा बारस की दादी।
लिखी है ललाट लेख ऊं मैं नहीं मीन-मेख।
लिछमी आई ज्यां ही गइ।
लिछमी कठे जाकर राजी हुई।
लीद की खाय तो हाथी की खाय जिंको पेट तो भर ज्याय।
लीप्यो पोत्यो आंगणूं और पहनी-ओढ़ी स्त्री सुन्दर लागै।
लुगाई की कमाई मोट्यार खाय तो टांटियै को बिस उतर ज्याय।
लुगाई कै पेट में टाबर खटा ज्याय, पण बात कोनी खटावै।
लुगाई को न्हाणू, मरद खाणूं।
लूंगा चढ़गी बांस, उतरै चौथे मास।
लूण फूट-फूट कर निकलै।
लूण बिना रसोई पूण।
लूली अर लीपै। दो जणां पकड्यां, कह आके बात? कह, आ चोखो लीपै।
ले पाड़ोसण झूंपड़ी, नित उठ करती राड। आदो बगड़ बुहारती, सारो ही बुहार।
ले ले करतां तो डाकण भी कोन्या ले।
लोडा तिरै, सिल डूबै।
लोहा, लकड़ा, चामड़ा, पहला किसा बखाण। बहु, बछेरा, डीकरा, नीमटियो पछाण॥ हिंदी – लोहे का, लकड़ी तथा चमड़े का पहले से पता लगाना मुश्किल है। बहू, लड़का तथा घोड़े के बच्चोँ के गुणोँ का पता वयस्क होने पर ही चलता है।
ल्याऊं चून उधारो कोई गुड़ दे तो। मर-पड़ की खाल्यूं-कोई ल्याकर दे तो॥
वर घोडी घर और था, खाती दाणू घास। यह घर घोड़ी आपणां, कर गोविंद की आस॥
वा ही नार सुलाखणी, जैंको कोठी धान।
वाकै जासी धरतड़ी, वाकै जा आसमान।
वात, पित युक्त देह ज्यांक, होय रहे धाम–धूम। अण भणियां आलम कथी कहे मेहा अतिघोर॥ हिंदी – वातयुक्त व्यक्ति को यदि गर्मी से सिर दर्द करे तो वर्षा की सम्भावना होती है।
विद्या बणिता बेल नृप, ये नहिं जात गिणन्त। जो ही इनसे प्रेम करै, ताहू कै लिपटन्त॥
वेश्या बरस घटावै अर जोगी बधावै।
वैसुन्दर देवता घणी ई चोखो पण घर में लाग्यां बेरो पड़ै।