Murarka Gotra Sati Shri Jetal Dadiji (Lachhmangarh)

Murarka Sati: Shri Jetal Dadiji (Lachhmangarh) मुरारका सती : श्री जेतल दादीजी (लछमनगढ़)

SATI DEVIYON KI JAI

Marwari Pathshala

4/27/20241 min read

मुरारका सती :श्री जेतल दादीजी (लछमनगढ़)

जेतल बाई का जन्म वि. सं. 1741 साल में बीकानेर के सुजासर गांव में एक अग्रवाल (ऐरन) कुल में हुआ |

उनका विवाह : वि. सं. 1753, ज्येष्ठ सुदी निर्जला ग्यारस के दिन, नवलगढ़ के खेड़ली गाँव के सेठ श्री भूरामल जी के पुत्र श्री वृद्धराम जी के साथ सम्पन्न हुआ ।

वि. सं. 1753, आषाद बदी एक्कम को बाराती बीकानेर से खेड़ली को रवाना हुए, मुरारका बाराती के साथ उनके कुल पुरोहित डोकवाल ब्राम्हण सुत और उनकी दुल्हन राजल बाई भी साथ थे। बीच रास्ते में बाराती लछमनगढ़ आगये, वहा उन्हें पोद्दार परिवार की बारात भी मिल गए। तीनो परिवार वही बीन्जारो के कुवा के पास रात गुजारने का निश्चित करते है।

रात घिर आने पर एक धकुओ की सेना ने बारातियों पर हमला बोल्दिया था | नव वधुओ को डाकुओ के कुदृष्टि से बचाने, तीनो कुल के दूल्हे रण में उतर गए । धोके से तीनो कुल के लाडले मारे गए।

अपने पति पर बिपदा आता देख जगदम्बा माँ जेतल, राजल और मादल बाई के साथ दुष्टदल का संहार करती है । वि. सं. 1753, आषाद बदी तीज के सूर्योदय के साथ ही, श्री जेतल बाई पति श्री वृद्धरामजी के साथ अग्निरथ पे आरुद होकर सतलोक गमन हुई।

जेतल माँ ने अपने साथ डोकवाल सती राजल माता को भी पूजे जाने का वरदान दिया | आज वही सती स्थल पर जेतल दादी जी के साथ राजल सती का भी मण्ड है। अधिकतर सती दादीया त्रिशूल रूप में पूजी जाती है, पर जेतल दादीजी के विग्रह में त्रिशूल के साथ सथिया बना हुआ है।