Pride saga: Haadi Rani's unprecedented historical sacrifice

गौरव गाथा: हाड़ी रानी का अभूतपूर्व ऐतिहासिक बलिदान हाड़ी रानी राजस्थान की एक रानी थीं। वह हाड़ा चौहान राजपूत की बेटी थीं और उनका ब्याह रतन सिंह चूड़ावत से हुआ था। रतन सिंह मेवाड़ के सलुम्बर के सरदार थे। हाड़ी रानी ने अपने पति को रणक्षेत्र में उत्साहित करने हेतु जीवन का उत्सर्ग कर दिया था।

HISTORICAL EVENTS

5/30/20241 min read

गौरव गाथा: हाड़ी रानी का अभूतपूर्व ऐतिहासिक बलिदान

हाड़ी रानी राजस्थान की एक रानी थीं। वह हाड़ा चौहान राजपूत की बेटी थीं और उनका ब्याह रतन सिंह चूड़ावत से हुआ था।

रतन सिंह मेवाड़ के सलुम्बर के सरदार थे। हाड़ी रानी ने अपने पति को रणक्षेत्र में उत्साहित करने हेतु जीवन का उत्सर्ग कर दिया था।

किंवदन्तियों के अनुसार, मेवाड़ के राज सिंह प्रथम (1653-1680) ने जब रतन सिंह को मुगल गवर्नर अजमेर सुबह के विरुद्ध विद्रोह करने के लिये आह्वान किया, उस समय रतन सिंह का विवाह हुए कुछ ही दिन हुए थे। उन्हें कुछ हिचकिचाहट हुई। लेकिन राजपूतों की परम्परा का ध्यान रखते हुए वे रणक्षेत्र में जाने को तैयार हुए और अपनी हाड़ी रानी से कुछ ऐसा चिह्न माँगा जिसे लेकर वह रनक्षेत्र में जा सकें। रानी हाड़ी को लगा कि वे रतन सिंह के राजपूत धर्म के पालन में एक बाधा बन रहीं हैं। रानी ने अपना सिर एक प्लेट पर काटकर दे दिया। थाल में रखकर, कपड़े से ढककर जब सेवक वह सिर लेकर उपस्थित हुआ, तो रतन सिंह को बड़ी ग्लानि हुई। उन्होने उस सिर को उसके ही बालों से बांध लिया और लड़े। जब विद्रोह समाप्त हो गया तब रतन सिंह को जीवित रहने की इच्छा समाप्त हो चुकी थी। उन्होने अपना भी सिर काटकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर दी।

वे सोचने लगे कि अवश्य कोई विशेष बात होगी। राणा को पता है कि वह अभी ही ब्याह कर के लौटे हैं। आपात की घड़ी ही हो सकती है। उसने हाड़ी रानी को अपने कक्ष में जाने को कहा, दूत को तुरंत लाकर बिठाओ। मैं नित्यकर्म से शीघ्र ही निपटकर आता हूं, हाड़ा सरदार ने दरबान से कहा। सरदार जल्दी जल्दी में निवृत्त होकर बाहर आया। सहसा बैठक में बैठे राणा के दूत पर उसकी निगाह जा पड़ी। औपचारिकता के बाद ठाकुर ने दूत से कहा, अरे शार्दूल तू। इतनी सुबह कैसे? क्या भाभी ने घर से खदेड दिया है? सारा मजा फिर किरकिरा कर दिया। सरदार ने फिर दूत से कहा, तेरी नई भाभी अवश्य तुम पर नाराज होकर अंदर गई होगी, नई-नई है न, इसलिए बेचारी कुछ नहीं बोली। ऐसी क्या आफत आ पड़ी थी। दो दिन तो चैन की बंसी बजा लेने देते। मियां बीवी के बीच में क्यों कबाब में हड्डी बनकर आ बैठे। अच्छा बोलो राणा ने मुझे क्यों याद किया है? वह ठहाका मारकर हंस पड़ा। दोनों में गहरी दोस्ती थी। सामान्य दिन अगर होते तो वह भी हंसी में जवाब देता। शार्दूल खुद भी बड़ा हंसोड़ था। वह हंसी मजाक के बिना एक क्षण को भी नहीं रह सकता था, लेकिन वह बड़ा गंभीर था। दोस्त हंसी छोड़ो। सचमुच बड़ी संकट की घड़ी आ गई है। मुझे भी तुरंत वापस लौटना है। यह कहकर सहसा वह चुप हो गया। अपने इस मित्र के विवाह में बाराती बनकर गया था। उसके चेहरे पर छाई गंभीरता की रेखाओं को देखकर हाड़ा सरदार का मन आशंकित हो उठा। सचमुच कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयीं है। दूत संकोच रहा था कि इस समय राणा की चिट्ठी वह मित्र को दे या नहीं। हाड़ा सरदार को तुरंत युद्ध के लिए प्रस्थान करने का निर्देश लेकर वह लाया था। उसे मित्र के शब्द स्मरण हो रहे थे। हाड़ा के पैरों के नाखूनों में लगे महावर की लाली के निशान अभी भी वैसे के वैसे ही उभरे हुए थे। नव विवाहित हाड़ी रानी के हाथों की मेंहदी भी तो अभी सूखी न होगी। पति पत्नी ने एक दूसरे को ठीक से देखा पहचाना नहीं होगा। कितना दुखदायी होगा उनका बिछोह? यह स्मरण करते ही वह सिहर उठा। पता नहीं युद्ध में क्या हो? वैसे तो राजपूत मृत्यु को खिलौना ही समझता हैं। अंत में जी कड़ा करके उसने हाड़ा सरदार के हाथों में राणा राजसिंह का पत्र थमा दिया। राणा का उसके लिए संदेश था।

रतन सिंह स्वयं की शादी एक सप्ताह पूरा नहीं हुआ था और राजसिंह और चारूमती की शादी में ओरंगजेब कोई बाधा उत्पन्न न कर दे इसके लिए रतन सिंह ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए और हाडी रानी का भी क्षत्रीय चरित्र रहा होगा कि रतन सिंह के एक निशानी मांगने पर आपना सर काट के दे दिया, शादी को महज एक सप्ताह हुआ था। न हाथों की मेहंदी छूटी थी और न ही पैरों का आलता। सुबह का समय था। हाड़ा सरदार गहरी नींद में थे। रानी सज धजकर राजा को जगाने आई। उनकी आखों में नींद की खुमारी साफ झलक रही थी। रानी ने हंसी ठिठोली से उन्हें जगाना चाहा। इस बीच दरबान आकर वहां खड़ा हो गया। राजा का ध्यान न जाने पर रानी ने कहा, महाराणा का दूत काफी देर से खड़ा है। वह ठाकुर से तुरंत मिलना चाहते हैं। आपके लिए कोई आवश्यक पत्र लाया है, उसे अभी देना जरूरी है। असमय में दूत के आगमन का समाचार। ठाकुर हक्का बक्का रह गया।